Saturday, March 21, 2015

श्री जयप्रकाश चतुर्वेदी जी द्वारा रचित " शकुन्तला-महाकाव्य " दुष्यंत 

एवं शकुन्तला के पवित्र अमर प्रेम की कथा के मुखर स्वर की भांतिप्रतीत

होता है l सुगठित, सुरचित, अनुपम हर शब्द सौन्दर्य एवं अत्यंत

कुशलता के साथ एक दूसरे के संग गहन भावाभिव्यक्ति की सरसता के

साथ गुंथे हुए सीपाज की भांति अपनी मोहकता से बाँध लेते हैं l 


इस पुस्तक को पढ़ते हुए वर्णित देश, परिवेश और काल जैसे साकार रूप


में ह्रदय व संज्ञाकेंद्र में स्वयं आकर उपस्थित हो जाते हैं l सम्पूर्ण काव्य-

कोष के शब्द भुवनमोहिनी से प्रतीत होते हैं l काव्य साधक की योग्यता,

परिश्रम एवं बौद्धिक प्रखरता शब्दों में से स्पष्टतः परिलक्षित, प्रस्फुटित


हो रहे हैं l
मुझे पूर्ण विश्वास है कि श्री जयप्रकाश चतुर्वेदी जी की यह पुस्तक हिंदी


काव्य जगत में सदा के लिए अमिट अक्षरों में अंकित हो जाएगी l 
आपको हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ ... कंचन पाठक. pathakkanchan239@gmail.com
http://shakuntlamahakavya.blogspot.com/2015/03/l-l-l-l-l-l.html