Monday, August 28, 2017
मुक्तक--------
प्रेम उल्लास मन के सभी ढह गये
स्वार्थ ही स्वार्थ में सबके सब बह गये
नेह अन्तस में दोनों के पलता नहीं
आज सम्बन्ध-सम्बन्ध न रह गये//
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