श्री जयप्रकाश चतुर्वेदी जी द्वारा रचित " शकुन्तला-महाकाव्य " दुष्यंत
एवं शकुन्तला के पवित्र अमर प्रेम की कथा के मुखर स्वर की भांतिप्रतीत
होता है l सुगठित, सुरचित, अनुपम हर शब्द सौन्दर्य एवं अत्यंत
कुशलता के साथ एक दूसरे के संग गहन भावाभिव्यक्ति की सरसता के
साथ गुंथे हुए सीपाज की भांति अपनी मोहकता से बाँध लेते हैं l
इस पुस्तक को पढ़ते हुए वर्णित देश, परिवेश और काल जैसे साकार रूप
में ह्रदय व संज्ञाकेंद्र में स्वयं आकर उपस्थित हो जाते हैं l सम्पूर्ण काव्य-
कोष के शब्द भुवनमोहिनी से प्रतीत होते हैं l काव्य साधक की योग्यता,
परिश्रम एवं बौद्धिक प्रखरता शब्दों में से स्पष्टतः परिलक्षित, प्रस्फुटित
हो रहे हैं l
मुझे पूर्ण विश्वास है कि श्री जयप्रकाश चतुर्वेदी जी की यह पुस्तक हिंदी
काव्य जगत में सदा के लिए अमिट अक्षरों में अंकित हो जाएगी l
आपको हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ ...
कंचन पाठक.
pathakkanchan239@gmail.comhttp://shakuntlamahakavya.blogspot.com/2015/03/l-l-l-l-l-l.html
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