समीक्षित कृति- शकुन्तला महाकाव्य समीक्षक- डॅा पुष्पलता
चुने हुए रमणीयार्थ के प्रतिपादक शब्द कलपना और मनोवेगों का सुखद संचार
छुपे हुए भाव पर जितना प्रकाशमान होता है उतनी ही बेहतर काव्य रचना होती है
कलात्मक रूप से किसी भाषा द्वारा अभिव्यक्त कहानी या मनोभाव ही काव्य है। ध्वनि
गुणीभूत व्यंग्य और चित्र छिपा हुआ अभिप्राय गौणता और बिना व्यंग्य के भी चमत्कार
करते हैं। श्रृखलाओं में विधिवत् बँधी जो किसी व्यक्ति के पूरे जीवन की कहानी हो
महाकाव्य कहलाती है। प्रभाव रस का उद्रेक छिपे हुए भाव पर अधिक होता है तुकान्त
में लय ताल की व्यवश्था करनी पडती है। पद्य शब्द गत्यर्थक में पद धातु निष्पन होने
के कारण गति की प्रधानता इंगित करता है हृदय की रागात्मक अनुभूति और कल्पना से कवि
वर्ण भावात्मक और रोचक बनाकर पाठक के हृदय पटल पर स्थापित कर पाता है। हृदय रस
विभोर करने वाली भावना ,छवि नाना रूपों में, व्यापारों में भटकते हृदय को स्वार्थ
सम्बन्धों के संकुचित घेरे से निकालकर शेष सृष्टि से रागात्मक सम्बन्ध जोडती है।
महाकाव्य का विषय दुष्यन्त शकुन्तला के पवित्र परिणय की कथा है इस विषय पर लेखनी
उठाकर कवि ने निश्चय ही आत्मविश्वास और साहस से लवरेज कार्य किया है। नये विचार
नये कलेवर मेंयह विषय हमारे अन्तरमन की भावनाओं को आन्दोलित करता है। महाकाव्य नौ
समुल्लासों में विभाजित है कथानक में कवि ने अपनी कल्पना के अनुरूप कथानक
परिवर्तित भी किया है। परम्परा का निर्वहन करते हुये महाकाव्य के प्रराम्भ में वन्दना
भी की गयी है यथा-
हे शव्द ब्रह्म विनती तुमसे
नतमस्तक होकर
करता हूँ
स्वीकार करो मम वन्दन को
मैं पाँव
तिहारे पड.ता हूँ।
कथानक में दुष्यन्त का कण्व आश्रम आना,दुष्यन्त विरह वर्णन गौतमी
द्वारा बुलाने पर पुनः
आना,विवाह,वापसी,शकुन्तला की विरहावश्था,विदाई,सभा में जाना,साक्ष्य प्रस्तुत न कर
पाना,पुत्रोत्पत्ति का वर्णन,नृप का मुद्रिका मिलन के मिलने पर दुखित
होना,शकुन्तला की वापसी,शब्द ब्रह्म की वन्दना के साथ समापन सभी कुछ क्रमशः सहज
सरल ग्राह्य भाषा में प्रस्तुत किया गया
है। पाठक का मन पढते ही कथानक में डूब जाता है। शकुनतला की विदाई का दृश्य देखिए-
शकुन्तल मिल रही सबसे
गले सबको
लगाती है
आँख से अश्रु की
धारा
हृदय तक छलछलाती है।
भाव भीने शब्दों में बुना महाकाव्य का ताना बाना अत्यन्त खूबसूरत और आनन्द प्रदान करने वाला है।
काव्यधर्म का निर्वाह गम्भीरता से निशिछलता पूर्वक किया गया है। सुधी पाठकों में पुस्तक
का स्वागत पूरे उत्साह के साथ होगा। इसका मुझे पूरा विश्वास है। रचनाकार निशचय ही
साहित्य जगत को सुन्दर ग्रन्थ प्रदान करने के लिए बधाई का पात्र है रचनाकार को
साधुवाद-
डॉ पुष्पलता
253/1साउथ सिविल लाइन
मुजफ्फरनगर
उ0प्र0 पिन-252002
रचनाकार-जयप्रकाश चतुर्वेदी
ग्रा0-चौबेपुर,पो0-खपराडीह
जि0-फैजाबाद, उ0प्र0
पिन-224205
मो0-09936955846
09415206296
मूल्यमात्र-100रुपये,पृष्ठ-153
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